एक खास रोटी मुगल बादशाहों को थी बहुत पसंद, जाने उसे बनाने का पूरा तरीका

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रोटी तो लगभग हर घर में बनाई जाती है। कोई इसे फुलका कहता है तो कोई चपाती। भले ही भारत के अलग- अलग हिस्सों में इसे अलग- अलग नाम से जाना जाता हो, लेकिन लगभग भारत के हर कोने में रोटियां खाई जाती हैं। उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा में तो गेंहू की अच्छी पैदावार होती है, इसलिए रोटी तो वहां का मुख्य भोजन है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इन रोटियों की खोज किसने की होगी। ये रोटी खाने का चलन आखिर भारत मे आया कहां से। तो चलिए फिर आज इस सवाल का जवाब भी जान ही लेते हैं।

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यहां से हुई रोटी की उत्पत्ति

रोटी शब्द की उत्पत्ति को लेकर कहा ये जाता है कि ये संस्कृत शब्द रोटिका से आया है। संत सूरदास जी के ग्रंथ में भी रोटी का उल्लेख मिलता है।

हड़प्पा संस्कृति में भी मिले हैं रोटी को लेकर प्रमाण

कई ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण हैं जिससे ये मालूम पड़ता है कि रोटी और भारत का साथ काफी पुराना है।  3300-1700 ई. पू. हड़प्पा सभ्यता में भी रोटी का उल्लेख सुनने को मिलता है। उस दौरान भी लोग गेहूं, बाजरा, जौ उगाया करते थे।

मुगल बादशाह भी खूब खाते थे रोटियां

16 वीं शताब्दी के ‘आइन-ए-अकबरी’ डॉक्युमेंट में बताया गया है कि मुगल बादशाह अकबर को रोटी खाना बहुत पसंद था। कहा जाता है कि अकबर को रोटी इतनी पसंद थी कि वो उन्हें घी और चीनी के साथ खाया करते थे। इतना ही नहीं औरंगज़ेब को भी रोटी खाना काफी पसंद था। खुद को चुस्त- दुरुस्त रखने के लिए औरंगजेब रोटी खाया करता था। दिलचस्प बात तो ये है भी है कि 1857 से पहले स्वतंत्रता संग्राम में रोटियों को स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा भी खाया जाता था।

रोटी से जुड़े कुछ और साक्ष्य

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि रोटी खाने की शुरुआत पूर्वी अफ्रीका में हुई थी, जिसके बाद इसे भारत लाया गया था। यह भी कहा जाता है कि अरबों ने रोटी को व्यापार मार्गों से पूरे दक्षिण एशिया में फैलाया था। वहीं प्राचीन वैष्णव लेख, जिसमें भगवान जगन्नाथ जी के बारे में कहा गया है कि 15 वीं शताब्दी में भगवान गोपाल जी को चपातियां अर्पित की जाती थीं, जिन्हें रसोई में खीर और मीठे चावल से अधिक आवश्यक माना जाता था।

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